________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [63 कृष्णागर वर धूप दशांगी, खेवत जिन चरणन ढिग जाय। कर्म जलावत पुन्य चढ़ावत, गावत जिनगुण नृत्य कराय॥ मेरु सुदर्शन.॥७॥ ॐ ह्री. ॥धूपं॥ श्रीफल लौंग सुपारी पिस्ता, ऐला दाख छुहारे लाय। श्री जिनचरण चढ़ावै भविजन,शिवफल पावो कर्म नशाय॥ मेरु सुदर्शन. // 8 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल आठो द्रव्य सु लैके अर्घ चढ़ावौ श्रीजिनराज। बलबल जात लाल चरणन पर,पूजऊ भाव भक्त उर लाय॥ मेरु सुदर्शन.॥९॥ ॐ ह्रीं. ॥अर्ध। __ अथ प्रत्येकाघ (सोरठा) मेरु उत्तर दिश सार, ऐरावत शुभ देश है। तहां पढो वैताड़ तापर जिनमंदिर जजो॥११॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ अथ जयमाला (दोहा) प्रथम मेरु उत्तर दिशा, ऐरावत सु विशाल। रूपाचलपर जिन भवन, सुनो सु भवि जयमाल॥१२॥ पद्धडी छन्द जै जै श्री मेरु सुप्रथम जान, है नाम सुदर्शन सुख निधान। तामैं बन चार कहै बखान, सबके उपर पांडुक महान॥ चारो दिश चार शिला पवित्र, है रतनमई अति द्युति विचित्र। ता ऊपर केहर पीठ जोय तहां तीर्थंकरको न्हवन होय॥ ऐसो गिरराज विराजमान, ताकी उत्तर दिश है महान। तहां ऐरावत वर क्षेत्र सार, जै ताकौ वर्णन है अपार //