________________ 50 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान NNNNNNNNNNNNNNNNNARSE जै तिन मंदिरमें देव आय, पूजै श्री जिनवर प्रीत लाय। जैजै तन निरखत जिन स्वरूप,जै जिनगुण गावत सुर अनूप॥ जै समवसरण रचना समान, वसु मंगल दर्व धरे सुजान। जै वेदीको वरणन विशाल, जै कटनी तीन बनी रिशाल॥ जै सिंहासन द्युति शोभमान, ता ऊपर कमल बनो महान। तहांश्रीजिनबिंबबिराजमान,शतआठअधिकबहुगुण निधान॥ तहां खेचर खेचरनी सु आय,बहु पाठ पढ़ें अति हरष लाय। जै नृत्य करें संगीत सार, विद्या बल रूप अनेक धार // जै जगमग जगमग जोत सार, जिनमंदिरकी शोभा अपार। जै हम पूजत यहां शीश नाय, वसु द्रव्य मनोहर ले बनाय॥ जै जै जै जग जयवंत देव, तुम चरणनकी हम करत सेव। भवि जीवनकी यह अरज जान,भवर तुम सेवा मिले आन॥ घत्ता-दोहा मेरु सुदर्शन पूर्व दिश, गिर बैताड विशाल। तिनपर जिनमंदिर कहें, तिनकी यह जयमाल॥३६॥ कुसुमलता छन्द जै जै जिनमंदिर नमत पुरंधर, जिनवर बिंब सु पूजी जै। जै मेरु सुदर्शन पूरव दिशमें, रूपाचल गिरि लोजी जै॥ षोडश मंदिर है ता ऊपर, दर्शन ताको कीजी जै। भवि जिवसु आवै,पुन्य बढ़ावै,निज अनुभवरस पीजी जै॥ इति आरती अथाशीर्वाद कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वर्णन को कर सकै बनाय॥