________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [ 47 NNANONareranararwariharaswara अथ प्रत्येकार्घ-सोरठा / कक्षा देश सु जान, मेरुके पूरव दिश गिनो। तहां रूपाचल आन, श्रीजिन भवन सुपूजिये // 11 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी कक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ देश सुकक्षा नाम, मेरु सु पूरव दिश कही। है सुन्दर जिन धाम, रूपाचल पर नित जजों॥१२॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी सुकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // मेरु सु पूरव आन, देश महाकक्षा बनो। तहां जिनमंदिर जान, विजयारध गिरपर जजों॥१३॥ _____ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी महाकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 3 // अर्घ॥ कक्षकावती देश, मेरु सु पूरव दिश विषै। गिर विजयारध वेश, जिनमंदिर तिनपर जजों॥१४॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी कक्षावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ दोहा-मेरु सु पूरव दिश विषैः, रूपाचल अभिराम। देश नाम आवर्त है, पूजो जिनवर धाम // 15 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरवदेश सम्बन्धी आवर्ता देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ देश मंगलावती गिन, मेरु सु पूरव बौर। विजयारध पर जिनभवन, पूजो मन धर जोर // 16 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ //