________________ 46] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान मुक्ताफलकी उनहार, अक्षत लीजत हैं। उज्जल जिनचरण निहार, पुंज सु दीजत हैं। हे मेरु सु.॥४॥ ॐ ह्रीं. अक्ष / / सुरतरुके फूल मंगाय, सुरगण लावत हैं। प्रभु पूजत मन हरषाय, जिनगुण गावत हैं। हे मेरु सु.॥५॥ ॐ ह्री. पुष्पं // फेनी गोझा सु बनाय, मोदक लै ताजे। पूजन श्री जिनवर पाय, बाजत हैं बाजे॥ हे मेरु सु.॥६॥ ॐ ह्रीं. नैवेद्यं // भवि दीप अमोलक लाय, जगमग जोत जगी। पूजत जिन चरण चढाय, तन मन प्रीत लगी॥ हे मेरु सु.॥७॥ ॐ ह्री. दीपं॥ कृष्नागर धूप मिलाय, दसविध खेवत है। सब कर्मन देत जलाय जिनपद सेवत हैं॥ हे मेरु सु.॥८॥ ॐ ह्रीं. धूपं॥ ले फल सुन्दर सुखदाय, नैननको प्यारे। पूजत जिनवरके पाय, हरष हिये धारे // ___हे मेरु सु.॥९॥ ॐ ह्री. फलं॥ जल फल वसु दर्व मिलाय, अरघ बनावत हैं। जिन चरणन देत चढ़ाय, पुन्य, उपावत हैं // हे मेरु सु.॥१०॥ ॐ ह्रीं. अर्घ॥