________________ 44 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ======= ==== = == == यह अतिशय श्री जिनराज भूप, शत इन्द्र चरण सेवै अनूप। जहां चौथो काल रहै सदीव, तहां कर्मभूम जानो सुजीव॥ तहां गिर वक्षार बने सु आठ, तिनपर जिनमंदिरके सु ठाठ। जै सिद्धकूट जिन धाम सार, जै वेदीको वर्णन अपार॥ तहां सिंहासन शोभै विशाल, तापर सु कमल राजै विशाल। जै श्रीजिनबिंब विराजमान,सत आठअधिक बहुद्युति महान्॥ जै भामण्डल छबि रही छाय, जै तीन छत्र सिरपर सुहाय। जै चमर जु चौसठ ढुरत सार, जै मंगलद्रव्य धरे निहार॥ जै इन्द्रादिक पूजत सु पाय, जै नृत्य करैं जिनगुण सु गाय। जै प्रभु गुणमहिमा अगम सार,मुनिजन ताको पावै न पार॥ घत्ता-दोहा मेरुसु पश्चिम दिश तनी, पूजा बनी विशाल। मन वच तन लव लायके, लाल भनी जयमाल // 30 // सोरठा-यह जिन पूजा सार, जो नर करें उछाहसों। ते पावें भवपार, स्वर्ग सम्पदा भोगकैं॥३१॥ ___ इति जयमाला ____ अथाशीर्वाद-कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वर्णन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बाढ़े अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पदले शिवपुर जाय॥ इति श्री सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। इत्याशीर्वादः माला