________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [43 ANNNNNNNNNNNNNNNNNNN नाग नामा गिर जान, मेरु सु पश्चिमदिश गिनो। जिन मंदिर उर आन, भविजन पूजो भावसों॥१७॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ देव नाम गिर सार, तापर जिनवर धाम है। करम होत सब छार; पूजत श्री जिनराजको॥१८॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी देव नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // अथ जयमाला (दोहा) मेरु सुदर्शन सोहनो, पश्चिम दिशा विदेह। गिर वक्षार कहे सु वसु, तापर श्री जिन गेह // 19 // तिन गुण गूंथी सरस विधु, वरनी परम विसाल। वसुविध जिनपद पूजिकै, अब वरनूं जयमाल॥२०॥ पद्धडी छन्द जै मेरु सुदर्शनकी सुजान, पश्चिम दिश क्षेत्र विदेह मान। जै तीर्थंकर राजै त्रिकाल, तिनको सुर नर खग नमैं भाल॥ जै बाहु सुबाहु विराजमान, जै मुनिगण तिनका धरत ध्यान। जै जिनवाणी धुन खिरे सार, श्री गणधर देव कहैं विचार॥ भवी जीव सुनैं आनंद धार, निज निज भाषा समझैं अपार। केई दुद्धर तप धारै महान, लहि केवल शिव पार्दै निदान॥ केई श्रावक व्रत धारै पुनित, लहि स्वर्ग सम्पदा अति सुरीत। केई पावै सम्यक् गुण अनंत, मिथ्यात पंथ नाशै तुरंत॥