________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [289 =========== == ==== दोहा-श्री मंदिर विद्युन मेरुके उत्तर दिश सुखदाय। इक्ष्वागिरपर जिन भवन पूजो अर्घ चढ़ाय॥११॥ ॐ ह्रीं पुष्करार्ध द्वीपमध्ये मंदिर विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र दोनोंके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा श्री जिनवर पद पूजकैं, बाढ़ो पुन्य विशाल। मन वच शीष नवायकै, अब वरनूं जयमाल॥१२॥ पद्धडी छन्द जै पुष्करार्धवर दीप जान, तामें दो गिर जिनवर वखान। पूरव दिश मंदिर नाम सार, पश्चिम विद्युन्माली निहार // जै ताकी उत्तर दिश विचार, सोहैं सुन्दर महिमा अपार। जै ऐरावत वर क्षेत्र दोय, तहां पुन्यवान उपजै सुलोय॥ ताबीच पडो गिरवर महान जो जन दुइ सहस कहें प्रणाम। चौड़ाई आठ शतक सु होय, जै इक्ष्वाकार सु नाम सोय॥ जैतापर जिनमंदिर विशाल, कंचनमई रत्न जडे सु लाल। जैतहां जिनबिंब विराजमान,शतआठ अधिक प्रतिमा प्रमान॥ जै धनुष पांचसै तन उत्तंग शशिसूर कोटि छवि होय भंग। जै प्रातिहार्य मंगल सु दर्व, जै राजैं तहां अद्भुत जुसर्व // सुर विद्याधरके भूप आय, जिनराज चरनको शीश नाय। वसुदर्व लिए अद्भुत विशाल,प्रभुचरनकमल पूजत त्रिकाल॥