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________________ 288] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==================== सुखदास सु अक्षत लाय उज्वल भल थारी। जिन चरन सु पूजत जाय अक्षयपद धारी॥ गिर इक्ष्वाकार. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ बहु फूल अनेक प्रकार, भविजन लावत हैं। जिनराज जजैं हित धार प्रभु गुण गावत हैं। गिर इक्ष्वाकार. // 5 // ॐ ह्री. // पुष्पं // नानाविधके पकवान, सरस बनावत हैं। ले पूजत श्री भगवान, क्षुधा नशावत हैं। गिर इक्ष्वाकार. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं // दीपककी जोत विशाल, जगमग मांहि लसैं। पूजत जिनचरण त्रिकाल, मोह विथा जु नसैं॥ गिर इक्ष्वाकार. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥ कृश्नागर धूप बनाय खेवत जिन आगै। वसु कर्मन देत जलाय, ज्ञानकला जागै॥ गिर इक्ष्वाकार. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं॥ बादाम सुलौंग मंगाय, पिस्ता धोय धरो। जिनचरन सु पूजत जाय, शिव सुन्दर जु वरो॥ गिर इक्ष्वाकार. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल वसु दर्व मिलाय, अर्घ बनावत हैं। जिन चरनन देत चढ़ाय, मन हरषावत हैं। गिर इक्ष्वाकार. // 3 // ॐ ह्रीं. // अर्घ //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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