________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [281 2222222222222222222 तापर श्री जिनमंदिर परम विशाल जू, पूजत पुन्य अपार कटैं अघ जाल जू॥१५॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश रूक्म पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो।५॥ अर्घं पद्धडी छन्द पंचमगिर सुन्दर शोभमान, ताकी उत्तर दिशमें वखान। तहां सिखरन गिरपरजिनसुथान जहां जजतजिनेश्वरको सुजान। ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश शिखरिनगिर पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अघु चौपाई विद्युन्माली मेरु महान, ताके भद्रशाल वन जान। सीता नदी दोऊ तट सार, पांच पांच तहां कुण्ड निहार॥ कुण्ड निकट दस दस गिर सोय, तापर इक इक प्रतिमा होय। सब मिल एक शतक जिनराय, मन वच तन पूजो लव लाय॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके भद्रशाल वन संबंधी सीता नदीके दोनों किनारे पांचर कुण्ड तिनके एक२ कुंडके समीप दशर कंचनगिरि तिन कंचनगिरिपर एक एक जिन प्रतिमा सब मिल एकसौ जिन प्रतिमा गंधकुटी सहित शाश्वते विराजमान तिनको॥७॥ अर्घ। विद्युन्माली मेरु उतंग, भद्रशालवन कंचन रंग। सीतोदा तटके दोय ओर, पांच पांच तहां कुण्ड सु जोर॥ दस कंचनगिर इक इक पास एक शतक सब जिनवर भास। तापर श्री जिनबिंब विशाल, रत्नमई पूजत भवि लाल॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके भद्रशाल वन संबंधी सीतोदा नदीके दोनों किनारे पांचर कुण्ड तिनके समीप दश दश कंचनगिरि तिसपर