________________ 280] श्री तेरहदीप पूजा विधान dorurYricinarurupucircupIPURINIRAN अथ प्रत्येकाघ-दोहा विद्युन्माली मेरुते दक्षिण दिश सुखकार। निषध नाम गिरपर जजो श्री जिनभवन निहार // 11 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके दक्षिणदिश निषध पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // चौपाई विद्युन्माली गिर सोहनो, दक्षिण महा हिमवन गिर बनो। ताके शिखर जिनेश्वर थान, पूजो भविजन पद उर आन॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके दक्षिणदिश महाहिमवन पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ। इन्ट विद्युन्माली गिर सोहै, दक्षिण हिमवन मन मोहै। तहां जिनमंदिर सुखकारी, भवि अर्घ जजों भर थारी॥ ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके दक्षिणदिश हिमवन पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ। मदअवलिप्तकपोल छन्द विद्यन्माली मेरूतनी उत्तर दिश जानो, मनमोहन मनहरन नीलगिर मनमें आनो। तापर श्री जिनभवन अकीर्तम सुन्दर सोहै, पूजत भविक त्रिकाल सबनके मनको मोहै // 14 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश नील पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ __ अडिल्ल पंचमगिर उत्तर दिशमें जानिये, रूक्म नाम गिर सुन्दर परम प्रमानिये।