________________ 274] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ននននននននននននននន अथ विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र संबंधी ___ रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 52 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द पंचममेरु तनी उत्तरदिश, क्षेत्र सु ऐरावत सुखदाय। तहां रुपाचलपर जिनमंदिर जजत जिनेश्वर सुरपति आय॥ सब विद्याधर निजगुण गावें हरष२ प्रभु परसों पाय। हम तिनकी आह्वानन विधकर, पूजैं निजधर मंगल गाय॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणं, स्थापन। अथाष्टकं-जोगीरासा श्वेतवरन मनहरन सु उज्वल जल ले झारी भरकै। जजत जिनेश्वरके पद पंकज सब दुख जात सु टरकै॥ पंचमगिरकी उत्तर दिशमें, ऐरावत है भाई। तहां रुपाचलपर जिनमंदिर, पूजत मन हरषाई॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र संबंधी रुपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ जलं॥ मलयागिर चंदन अर केसर दोनों घसकर लावों। भव आताप निवारन कारन श्री जिन चरन चढ़ावो॥ पंचमगिर. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥