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________________ 268] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान विद्युन्माली मेरू खन्न पश्चिम गन्धा देश सु धन्न। गिर वैताड शिखर जिनथान,अर्घ चढाय जजों धर ध्यान॥ ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ // विद्युन्गिर पश्चिम दिश तहां, नाम सुगन्धा देश है जहां। जिनमंदिर रुपाचल शीश, वसु विध पूजों पद जगदीश॥ ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुगंधा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ // पंचमगिर पश्चिम दिश सोय तहां गंधला देश जु होय। विजयारध गिर ऊपर जाय,श्रीजिनभवन जजों मन लाय॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // पंचम गिरते पश्चिम ओर, देश गन्धमालन है जोर। रूपागिरि जिनभवन रिशाल,मनवचतन पूजत भविलाल॥ _____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा विद्युन्माली मेरुतै, पश्चिम दिशा विशाल। रुपाचलपर जिन भवन सुन तिनकी जयमाल॥२८॥ पुष्करार्ध वरदीप में जग सार हो, पश्चिम दिशा महान। विद्युन्माली मेरु है जग सार हो कंचन वरन सु जान॥ जान कंचन वरन गिरवर तासु पश्चिम दिश जहां। वर देश वसत विदेह षोड़श, काल चौथा है जहां॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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