________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [237 अथ जयमाल - दोहा श्री जिनवर पद वन्दके, मन वच शीष नवाय। विद्यन्माली मेरुकी कहुं आरती गाय॥२७॥ पद्धडी छन्द जै विद्युन्माली मेरू सार, मन हरन सु कञ्चन वरन धार। जै सुन्दर शोभित है महान, नानाविध रतननकी सुखान॥ जै ताकी चारों दिश सु जान, वन चार कहें आगम प्रमान। वन भद्रशाल पहलो अनूप, नन्दनवन सब वनको सु भूप॥ सौमनस नाम तीजो रिशाल, पांडुक चौथो सुन्दर विशाल। जै चारों बनमें चार२ बन रहे सु जिनमंदिर निहार / / सब षोड़श जिनवर भवन जान, चारों दिशके भाषे पुरान। जै रत्नमई जगमग प्रकाश, चारन मुनि और करें निवास। जै कमकमई कलशा सुरंग ध्वज पंकत सोहै अति उतंग। वेदीपर सिंहासन विचित्र, तापर सौ कमल सोहै पवित्र / जै तिनमें श्री जिनबिंब जान,शत आठ अधिक प्रतिमा प्रमान। सिर तीन छत्र धारै जिनेश, चौसठ सु चमर धारै सुरेश॥ जै वृक्ष अशोक सो लहलहात, भामण्डल भव दरशै सु सात। जै सुर वरसावै फूल आय, दुन्दुभि बाजे अनहद बजाय॥ हम प्रात्यहार्य विध रही छाय, सबमंगल दर्व रचे बनाय। मनमोहन मूरत हैं जिनेंद्र, लख लोचन सहस किये सुरेन्द्र॥ जै सुर विद्याधर सबै आय, जिनचरन कमल पू0 बनाय। नाचतसुरपति अतिमुदित काय,गुणगानकरत श्रवनन सुहाय॥