________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [235 = == = == == == == = == विद्युमाली मन मोहै, पूरव नंदनवन सोहै। तहां श्रीजिनभवन सुहाई, नित अर्घ जजोरे भाई॥१५॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके नंदनवन संबंधी पूरव दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ // विद्युन्माली गिर देखो, दक्षिण नंदनवन पेखों। जिनभवन सरस सुखदाई, पूजो भवि अर्घ चढ़ाई॥१६॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके नंदनवन संबंधी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ // विद्युन्माली गिर कहिये, पश्चिम नंदनवन लहिये। जिनमंदिरकी छबि भारी भवि अर्घ जजो भर थारी॥१७॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके नंदनवन संबंधी पश्चिम दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ विद्युन्माली गिर जानो, नंदन वन उत्तर मानो। जिनराज भवन द्युति जोई पूजो भवि अर्घ संजोई॥१८॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके नंदनवन संबंधी उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ॥ दोहा-विद्युन्माली पूरव दिश, वन सोमनस विशाल। जिन मंदिरमें जायके, पूजो अर्घ त्रिकाल // 19 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके सौमनस वन संबंधी पूर्व दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ॥ दक्षिण दिश सौमनस है विद्युन्माली तेह।। वसु विध अर्घ संयोजके पूजो जिनवर एह // 20 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके सौमनस वन संबंधी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥