________________ 232] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SANSararararaswarararwarihararera अथ पुष्करार्ध द्वीपमध्ये पश्चिमदिश विद्युन्मालीमेरु संबंधी षोडश जिनमंदिर पूजा नं. 44 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द | विद्युन्माली मेरु पंचमो, पुष्करार्ध वर द्वीप मझार। कंचन वरन लसै पश्चिम दिश, ता ऊपर सोहैं वन चार॥ तहां श्री जिनवर बिंब बिराजै, चाल वरन षोड़श सुखकार। तिनकी आह्वानन विध करकै, हम पूजत जिन पद उर धार॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्मली मेरु के चारों वन सम्बन्धी षोडश जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः, ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं। अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द सरस मनोहर उज्ज्वल जल ले, क्षीरोदधि सम लेत मंगाय। श्रीजिनचरण चढ़ावत भविजन,जन्मअर मरनजरादुख जाय॥ विद्युन्माली मेरु पंचमो, ताके चारों वन दिश चार / तिनमें षोड़श भवन अनूपम जजत जिनेश्वर नैन निहार॥ ____ॐ ह्री विद्युन्माली मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी पूर्व॥१॥ दक्षिण // 2 // पश्चिम // 3 // उत्तर // 4 // नंदनवन संबन्धी पूर्व // 5 // दक्षिण॥६॥ पश्चिम // 7 // उत्तर॥८॥ सोमनस वन सम्बन्धी पूर्व॥९॥ दक्षिण // 10 // पश्चिम // 11 // उत्तर // 12 // पांडुक वन सम्बन्धी पूर्व // 13 // दक्षिण॥१४॥ पश्चिम // 15 // उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥ मलयागिर करपूर सु चंदन, केशर रंग भरी तहां लाय। भव आताप सु दूर करनको, श्री जिन चरनन देत चढ़ाय॥ विद्युन्माली. // 3 // ॐ ह्री. // चंदनं॥