________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [229 SESSINESSSSSSSSSSSSSSS एक जिनप्रतिमा ऐसे सर्वमिल एकसौ प्रतिमा गंधकुटी सहित सास्वती विराजमान तिनको॥७॥ अर्घ॥ वन भद्रशाल सु मेरु मंदिर, नदी सीतोदा महा। द्रह पांच पांच कहें दोउ दिश, मेरू दश दश वन रहा। कंचन सु गिर तस नाम जाका, एक एक प्रतिमा जहां। सब एक शत जिन प्रति जजत हम, अर्घ धर करमें तहां। ॐ ह्रीं मंदिर मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी सीतोदा नदीके दोनों किनारे पांच पांच कुण्ड तिनके समीप दश दश कंचनगिर तिसपर एक एक जिनप्रतिमा अकीर्तम गन्धकुटी सहित विराजमान तिन एकसौ प्रतिमाजीको॥८॥ अर्घ॥ मंदिर सु गिर जिन भवन सोलह, बहु कुलाचल शीस हैं। षोडश सु गिर वक्षार ऊपर रुचिक गिर चौतीस हैं। गजदंत चार सु कूर द्रुम, द्रह आठ सत्तर सब जहां। नित प्रति जजों भवि भाव सेती, अर्घ धर करमें तहां॥ ___ॐ ह्रीं मेरु मंदिर संबंधी अठत्तर जिन मंदिरमें सिद्धकूट विराजमान तिनको पूर्णार्धं // 9 // मंदिर सु पूरव मानुषोत्तर, परै कालोदधि कहा। दक्षिण सु उत्तर कार इष्वा, बीच क्षेत्र सु अति लहा॥ जिस बीच साद अनाद जिन गृह, सिद्धभूम जहां जहां। तिन प्रति जजों भव भावसेती, अर्घ ले करमें तहां॥ __ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दिशा विदिशा मध्ये कालोदधि समुद्रादि मानुषोत्तर पर्वत पर्यन्त जहां जहां कीर्तम अकीर्तम जिनमंदिर होय अथवा सिद्धभूमि होय तहां तहां // 10 // अर्घ॥ इति जयमाल।