________________ 206 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SararararararNITISrararararararara अथ मंदिरमेरूके पूरव विदेह सम्बन्धी षोडश रूपाचल पर जिनमंदिर पूजा नं. 39 अथ स्थापना - कुसुमलता छन्द मंदिरमेरु तनी पूरव दिश, षोडश रूपाचल तहां जान। तिसपर जिनवर भवन अनूपम, रतनमई सुन्दर सुख खान॥ तिनमें श्री जिनबिंब विराजित, जिनपद पूजत सुरपति आन। हम तिनकी आह्वानन विधकर, जजत जिनेश्वर श्री भगवान। ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी षोडश रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवोषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, स्थापनं। __ अथाष्टकं-छन्द वो जिन पूजो रे भाई, भला प्रभु पूजोरे भाई। यहश्रावककुलकोपायकै,प्रभुपूजोरेभाई,भलाप्रभुपूजोरेभाई॥ सरस मनोहर उजल जल ले, रतन कटोरी भरकै। जन्मजरादुःखनाशनकारण, श्री जिनसन्मुखधरकै॥वो जिन. मंदिर मेरु तनी पूरव दिश, रूपाचल गिर जानो। तिनपर षोडशभवन जिनेश्वर पूजाकर सुख मानो॥वो जिन. ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी कक्षा॥१॥ सुकक्षा // 2 // महाकक्षा // 3 // कक्षकावती॥४॥ आवर्ता // 5 // मंगलावती // 6 // पुष्कला // 7 // पुष्कलावती॥८॥ वक्षा // 9 // सुवक्षा // 10 // महावक्षा // 11 // वत्सकावती॥१२॥ रम्या॥१३॥ सुरम्या॥१४॥ रमणी // 15 // मंगलावती देश संस्थित रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥