________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [169 COUNrUrurucunrunrururunununununua सुखदास कमोदं धार प्रमोदं, अति मन मोदं धोय धरो। जिन चर्ण चढ़ावो, मन हर्षावो, शिवमुख पावो पुंज करो॥ अचलमेरु. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल केतकी वेल चमेली, श्री गुलाब धर जिन आगै। भविजन मन भावत फूल चढ़ावत, कामबाण ततक्षण भागैं॥ ___अचलमेरु. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // नेवज ले नीको तुरत सुधीको, श्री जिनवर आगै धरिये। भरथाल चढ़ावो क्षुधा नशावो, जिन गुण गावो शिव वरिये॥ ___ अचलमेरु. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ मणमई दीप अमोलक लेकर, जगमग जोत सु होत खरी। मोहांध विनाशक सुख परकाशक, श्री जिन आगँ भेट धरी॥ अचलमेरु. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं // कृश्नागर धूपं जजि जिन भूपं, लख जिन रूपं खेवत हैं। सब पाप जलावै पुण्य बढ़ावै दास कहावै सेवत हैं। अचलमेरु. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं // बादाम छुहारे लौंग सुपारी, श्रीफल भारी कर धरकै। जिनराज चढ़ावै मन हर्षावै, शिवफल पावै अघ हरकै॥ अचलमेरु. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ वसु दर्व मिलावै अर्घ बनावै, जिनवर पगतल धारत हैं। भवर सुख पावै शुभगति जावै, कर्म पुंज निरवारत हैं। अचलमेरु. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्थ॥