________________ 168 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान aarararararareranaararararararan अथ अचलमेरुके दक्षिण उत्तर दिश षट्कुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 31 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द अचलमेरुके दक्षिण उत्तर, षट् कुलगिर भाषे जिनराय। तिनके शिखर कूट पंकतिके,बिच बिच सिद्धकूट सुखदाय॥ तहां जिन मंदिर बने अकीर्तम, सुर विद्याधर पूजन जाय। आह्वानन विध कर अपने घर, हम पूजत हैं मंगल गाय॥ ____ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिण उत्तर षटकुलाचल पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अब मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनं। अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द क्षीरोदधिको उज्जल जल ले, श्री जिनचरण चढ़ावत है। जन्म जरा मृत नाशन कारण, जिन गुण मंगल गावत है। अचलमेरुके दक्षिण उत्तर, षट्कुल गिरपर जिन भवनं। सुर खग मिल ध्यावै पुन्य बढ़ावै, हम पूजत यां जिनचरनं॥ __ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिण दिश निषध // 1 // महाहिमवन // 2 // हिमवन॥३॥ उत्तरदिश नील॥४॥ रुक्मनी॥५॥ सिखरनी पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ जलं॥ मलयागिरि चन्दन दाह निकन्दन, केशर डारी रंग भरी। जिनवर पद ध्यावै शिवफल पावै, पूजत भव आताप हरी॥ अचलमेरु. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥