________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [165 rerareranararararareranararareranaaras मुरतरु समके फूल सुगन्धित, वरन वरनके लीजे। पूजत श्री जिनवर चरणांबुज, मदन जलांजुल दीजे॥ अचलमेरु. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // नाना विध पकवान मनोहर, चक्षु घ्राण सुखकारी। श्री जिनचरण कमल नित पूजो, भर भर कंचन थारी॥ अचलमेरु. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ जगमग जगमग होत दसों दिश, दीपक जोत जगावो। आरती करत जिनेश्वर आगै, हरष हरष गुण गावो॥ __ अचलमेरु. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं // दस विधकी बहु धूप सुगन्धित, अगन बीच ले खेवो। अष्ट करम नाशक जिनवर पद, भविजन निशदिन सेवो॥ अचलमेरु. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं // फल अति मिष्ट बादाम छुहारे, किसमिस दाख सुपारी। फल ले पूजो जिनपद पंकज, पावो शिवफल भारी॥ अचलमेरु. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल चंदन अर फूल मनोहर, अक्षत नेवज नीको। दीप धूप फल अर्घ सु लेकर, पूजत श्री जिनवरजीको॥ ____ अचलमेरु. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्ध / ___ गीता छन्द गिर अचल उत्तर दिश मनोहर, क्षेत्र ऐरावत सुनो। तिन बीच गिर विजयार्द्ध, उज्जल कूट नव तापर मुनो॥