________________ 164] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान nurunnurinnnnnnnnnnnnnnn अथ अचलमेरुके उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 30 अथ स्थापना-अडिल्ल छन्द अचलमेरु उत्तर ऐरावत खेत है, तहां पड़ो वैताड़ वरण अति स्वेत है। ताके सिखर निहार, जिनेश्वर धाम जू, आह्वानन विध करी छोड़ सब काम जू॥१॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं। अथाष्टकं-जोगीरासा पुण्डरीक द्रहको जल निर्मल, रतन कटोरी भरिये। धार देत श्री जिनवर आगै, जन्म जरा दुख हरिये॥ अचलमेरु उत्तर ऐरावत, रूपाचल सुखकारी। सिद्धकूट तापर जिनमंदिर, तिन प्रति धोक हमारी॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ जलं॥ मलयागिर करपूर सु चन्दन, केसर परिमल धारी। जजत जिनेश्वरके पद पंकज, भव आताप निवारी॥ अचलमेरु. // 3 // ॐ ह्री. // चंदनं / / मुक्ताफल सम उज्जल अक्षत, सुन्दर धोय सु लीजे। मन वच तन जिनवर पद आगै, पुंज मनोहर दीजे // अचलमेरु. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं /