________________ 162] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान = == = = == = = = = = == गीता छन्द अचलगिरकी दिशा दक्षिण, भरतक्षेत्र सुहावनो। तसु बीच रुपाचल मनोहर कूट जब सन भावनो॥ तहां सिद्धकूट सिखर विराजै जिन भवन अति मन हरैं। वसु दर्व ले हम जजै नितप्रति, परम आनंद उर धरै॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा अचलमेरु दक्षिण दिशा, भरत क्षेत्र सु विशाल। रुपाचलपर जिन भवन, तिनकी सुन जयमाल // 12 // पद्धडी छन्द जै द्वीप धातुकीमें निहार, गिर अचल तनो वरनन अपार। जै ताकी दक्षिण दिश अनूप, तहां भरतक्षेत्र सुन्दर स्वरूप॥ तहां छहों कालकी फिरन होय,कोडाकोड़ी दश उदधि सोय। जै भोगमूम पहिले सु तीन, तहां जुगल धर्म चले प्रवीन॥ दस कल्पवृक्ष तहां रहै जाय, मनवांछित सुख सब नर कराय। जब चौथा काल लगै सु आय, तब कर्मभूम बरतें बनाय॥ जै तीर्थंकर चौबीस होय, द्वादश चक्री जानो सु लोय। बल नारायण प्रतिहर प्रमान, नवर सब जानो सु जान॥ यह त्रेसठ पदवी पुरुष जोय, अरु बहुत जीव उत्कृष्ट होय। तीनको कहांलो करिये बखान, विधसहित कहो उत्तर पुरान॥ केई मुनिव्रत धारै तज अवास, केई श्रावक व्रत पालैं उदास। केईचारघातियाकर्मनाश, केवलपदलहिअविचलअवाश॥