________________ 160] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ताके पुत्र पौत्र अरू सम्पति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोडश रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ अचलमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र संबंधी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 29 ____ अथ स्थापना अडिल्ल अचलमेरु के दक्षिण भरत सु जानिये। तहां सु गिरि वैताड़ श्वेत उप जानिये // सिद्धकूट जिन धाम विराजित सार जू। आह्वानन विध करूं हरष उर धार जू॥१॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र संबंधी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनम्। पद्म द्रहको उज्वल जल ले, कंचन झारी भरिये। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, जन्म जरा दुख हरिये॥ अचलमेरुके दक्षिण दिशमें, भरतक्षेत्र सुखकारी। तहां रूपाचलपर जिनमंदिर, तिन प्रति धोक हमारी॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ जलं //