________________ 158] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ======= ======= == === पश्चिम अचलमेरु” लेह, गन्धा देश परम सुख गेह। रूपाचलपर भवन विचित्र, अर्घ जजों वसु दर्व पवित्र // ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधा देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ // देश सुगन्धा वसे सु थान, अचलमेरु पश्चिम दिश जान। रूपाचल जिनमंदिर जोय, वसुविध अर्घ जजों मद खोय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुगंधा देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ अचलमेरुके पश्चिम भाग, देश गन्धला बसै सु भाग। निरस जिनालय अर्घ चढ़ाय, विजयारध पर्वतपर जाय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधला देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // गन्धमालनी देश रमन्य, अचलमेरूके पश्चिम धन्य। रूपाचलपर हरष चढाय, अर्घ जजों जिनमंदिर जाय॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधमालनी देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // अथ जयमाला-दोहा अचलमेरु पश्चिम दिशा, रूपाचल सु विशाल। तिनपर जिनमंदिर जजों, अब वरनूं जयमाल॥ पद्धडी छन्द जै अचलमेरु तीजो विशाल, जै जयवंतो जगमें त्रिकाल। ताकी पश्चिमदिशमें सुजान, षोडश विदेह उरमें सु आन॥ जहां चौथों काल रहै सदीव तहां कर्मभूम वरतै सु जीव। जहां तीर्थंकरको जन्म होय, चक्री प्रतिहर बलभद्र सोय॥