________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [157 Dararararararararanaarasrirararira अचलमेरु पश्चिम सुखकार, कुमदा देश बसै निरधार। जिनमंदिर तहां पूजो जाय, रूपाचल पर अर्घ चढाय॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी कुमदा देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // सरिता देश वसै शुभ थान, अचलमेरू पश्चिम दिश जान। जिनमंदिर विजयारध सीस वसुविध अर्घ जजों जिन ईश॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सरिता देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ॥ पश्चिम अचलमेरुकी कही वप्रा देश विराजै सही। जिनमंदिर वसु द्रव्य मिलाय, अर्घ जजों रूपाचल जाय॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी वप्रा देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ // देश सुवप्रा अति सुख रास, अचलमेरुतें पश्चिम वास। विजयारधपर जिन थल देख,अर्घ जजो उर हर्ष विशेख॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुवप्रा देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ // अचलमेरुतें पश्चिम सुनो, देश महावप्रा तहां मुनो। वसुविध अर्घ जजों धर ध्यान, गिर वैताड सिखर जिनथान। ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी महावप्रा देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ / वप्रकावती देश महान, पश्चिम अचलमेरुतें जान। जिनमंदिर पूजो विहसाय, विजायरध पर अर्ध चढाय॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी वप्रकावती देश संस्थित रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ //