________________ 140] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ======= == ====== जै कोमल मधुर सुरस गुण भारी, सो गुण हम ध्यावै। जै फलबहु विध सुन्दर भरथारी, सो गुण हम ध्यावै॥जैले.१६ जै अचलमेरु.॥१७॥ ॐ ह्रीं. // फलं॥ जै जल फल अर्घ बनाय चढावों, सो गुण हम ध्यावै। जै जिन गुणगाय अक्षयपदपावो,सो गुण हम ध्यावै।जै ले.१८ जै अचलमेरु.॥१९॥ ॐ ह्रीं ॥अर्धं // अथ प्रत्येकाघ - दोहा प्रथम सु गिर प्राश्चात्य है, तापर जिनवर धाम। तहां जिनबिंब निहारके, अर्घ जजूं तज काम॥२०॥ ____ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूर्व विदेह संबंधी प्राश्चात्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 1 // अर्घ॥ चित्रकूट दूजो कहो, तापर श्री जिन गेह।। वसु विध अर्घ संजोयके पूजो मन धर नेह // 21 // ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूर्व विदेह संबंधी चित्रकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // पद्म नाम तीजो सु गिर, तहां जिनभवन रिशाल। श्री जिनवर पद पूजके, धोक देत नमि भाल॥२२॥ ___ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूर्व विदेह संबंधी पद्म नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ . नलिन नाम वक्षार गिर, तापर श्रीजिन थान। वसु विध पूजत भविकजन हम पूजत धर ध्यान // 23 // ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूर्व विदेह संबंधी नलिन नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥