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________________ कर्मभिश्चापि सुशुभैः] श्लोकपादसूची [कर्म वैतानसंभवम् कर्मभिश्चापि सुशुभैः 13. 72. 30. कर्ममिश्चिन्तितो लोकः 3. 107*. 1 pr. कर्ममिस्तामसैर्वृतः 12. 271. 664. कर्मभिस्तु शुभाशुभैः 14. App. 4. 586 post. कर्म यत्क्रियतेऽनघ 12. 783*. 1 post. कर्म यत्तु शुभाशुभम् 13. App. 15. 2196 post. कर्म यत्परपीडनम् 13. App. 15. 1508 post.. कर्म यत्समुपागतम् 1. 179. 134. कर्म यत्साधितं त्वया 3. 170. 53d. कर्म यद्यत्समाचरेत् 12. 60. 224. कर्म यद्वर्तते कृतम् 12. 280. 14. कर्ममिस्ते निरानन्दाः 12. 236. 21". कर्मभिः परिपश्यन्ति 12. 245. 1deg. कर्मभिः पाण्डुनन्दन 12. 330. 24. कर्ममिः पार्थ नानात्वं 13. 105. 20. कर्मभिः शुचिभिर्देवि 13. 131. 47". कर्मभिः शुभकर्मिणम् 13. 15. 14. कर्मभिः शुभलक्षणैः 12. 286. 324. कर्मभिः शोभनैर्युताः 13. App. 9A. 65 post. कर्मभिः श्रुतसंपन्नः 12. 213. 16". कर्मभिः सजनाचीणैः 13. 48. 396. कर्मभिः सत्यवागिति 7. 85. 47d. कर्मभिः समपूजयन् 7. 164, 159. कर्मभिः स्वकृतैः सा तु 1. 157.79. कर्मभिः स्वैरभिष्टुवन् 3. 101. 134. कर्मभिः स्वैरुपचितः 5. 121. 3. कर्मभिः स्वैर्दिवं गते 12. 46. 20deg. कर्मभिः स्वैः समावृतः 14. 17. 28. कर्म भीमस्य भारत 3. 12. 74. कर्म भीमः करोम्यहम् 7. 102. 86'. कर्म भूतेषु वर्तते 14. 20.84. कर्मभूमिमिमां प्राप्य 3. 181. 31. कर्मभूमिरियं तात 3. 1176*. 1 pr. कर्मभूमिरियं ब्रह्मन् 3. 247. 35. कर्मभूमिरियं भूमिः 14. 17. 32". कर्मभूमिरियं राजन् 12. 161. 10%. कर्मभूमिरियं लोकः 12. 185. 19". कर्मभूमिस्तु मानुष्यं 1. App. 36. 77 post. कर्मभूमिं प्रविश्य ताम् 12. 309. 89. कर्मभूमि विचेतसः 12. 309. 13. कर्मभोगेन बध्यन्तः 11. 3. 16. कर्मभ्यो यो निवर्तते 12. App. 29B. 167 post.. कर्मभ्यो विप्रमुच्यन्ते 12. 36. 18. कर्म मित्रमिति प्रभो 12. 164. 124. कर्म मूर्त्यात्मकं विद्धि 12. 34.7". कर्ममूलस्य लोपकम् 12. App. 17A. 135 post. कर्ममूलं ततः फलम् 12. 199.64. कर्म यच्छुभमेवेह 12. 154. 24deg. कर्मयज्ञक्रियायोगैः 13. App. b. 61 pr. कर्म युक्तमिहात्मनः 7. 148. 47'. कर्मयुक्तानि तानि तु 14. 42. 16. कर्मयुक्तान्प्रशंसन्ति 12. 267. 25deg. कर्मयोगाः शुभानने 13. App. 15. 527 post. कर्मयोगेन चापरे 6. 35. 244. कर्मयोगेन योगिनाम् 6. 25. 34. कर्मयोगो विशिष्यते 6. 27. 2. कर्मयोनिरनुष्ठिता 12. App. 29B. 164 post., 168 post. कर्म राजन्प्रकीर्तितम् 13. 141. 30. कर्म राज्ञो महाबुद्धे 14. 188*.2 pr. कर्म लोकहितं कृतम् 1. 152. 176. कर्म लोकहिताय वै 3. 215. 11'. कर्म लोके धनंजय 5. 158. 24deg. कर्म लोके प्रकाशयन् 12. 36. 3. कर्म लोके महर्षिभिः 15. 35. 24deg. कर्म लोके विगर्हितम् 12. 283. 5. कर्म लोकेषु यद्भवेत् 1. 179. 11'. कर्मवज्रा यवीयसः 1. 158. 49". कर्मवन्ति हि यानि च 8. 59. 39". कर्मवश्यं भोगवश्य 13. App. 15. 2633 pr. कर्मवश्यैस्तु पूरितम् 13. App. 15. 2603 post. कर्म वाचमतिशयते 2. 38. 40". कर्म वा धर्मसंहितम् 4. 47. 14. कर्म वा निन्दितं क्वचित् 3. 257. 6. कर्म वाप्यपराधजम् 12. 137. 42. कर्मविक्रमसत्कृतः 2. App. 21. 149 post. कर्मविज्ञानतो गतिः 12. 287. 264. कर्म विज्ञापितुं भद्रे 13. App. 15. 2081 pr. कर्मविद्यातपोभिस्तु 12. App. 29B. 159 pr. कर्मविद्यामयावेतौ 12. 233. 3. कर्म वीटोपलब्धये 1. 122. 134. कर्मवीर्याः स्मृताः शूद्राः 1. 1421*.2 pr. कर्म वै कुरुनन्दनाः 4. 1. 19". कर्म वैजयिकं स्विह 4. 690*. 1 post. कर्म वैतानसंभवम् 3. 239. 194. -667 -
SR No.032840
Book TitlePatrika Index of Mahabharata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshuram Lakshman Vaidya
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages808
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size25 MB
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