________________ सम्पादकीय काच के घर में रहने वाला जब अन्य के फौलादी महल पर पत्थर उठाता है, तब वह स्वयं को सुरक्षित समझने की बड़ी भूल करता है / ठीक इसी प्रकार मूर्तिपूजा जैसे शाश्वत जैन प्राचार के सामने पत्थर फेंकने की अनुचित चेष्टा स्थानकवासी सम्प्रदाय के प्रबरणी आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज ने की है। . प्राचार्य श्री ने "जैन धर्म का मौलिक इतिहास खंड 1 और 2" लिखकर आगम शास्त्रों, पागमेतर प्राचीन जैन साहित्य, पुरातत्त्व सामग्री, विद्यमान हजारों जैन तीर्थों और लाखों जिन मूर्तियों को झूठा करने का दुस्साहस किया है / जिससे जैन समाज को बहुत पाशा और अपेक्षा है ऐसे विद्वान् डा० नरेन्द्र भानावत भी ऐसी निम्न कक्षा की पुस्तक छपवाने में साथ-सहकार देते हैं तब खेद होता है। 108 से भी अधिक शिष्यों के गुरु एवं 108 वर्धमान तप मायंबील की अोली के आराधक न्याय विशारद् पूज्य प्राचार्यश्री विजय भुवन भानुसूरिजी महाराज साहब के शिष्यरत्न मुनिराजश्री भुवन सुन्दर विजयजी महाराज साहब ने भाचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज द्वारा लिखित "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" जो सत्य तथ्य से रहित होने के कारण सर्वथा अमौलिक और कल्पित है, पर सुन्दर मोमांसाटीका रचकर प्रबुद्ध जैन समाज के सामने रेड लाईट दिखायी है, जो