________________ [ प्रकरण-११] वैशाली में श्री मुनिसुव्रत स्वामी का स्तूप श्रेणिक महाराजा के पुत्र कूरिणक ने विशाला नगरी पर चढ़ाई की। उसी नगरी में बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी की पादुका स्थापित थी, जिससे नगरी पर कूणिक विजय नहीं पा सके थे। इसका वर्णन श्री नन्दीसूत्र में पृ० 61 पर है / यथा 444 विशालायां पुर्या कूलवालकेन विशाला भङ्गाय यन्मुनिसुव्रत पादुका स्तूपोत्खात सा तस्य पारिणामिकी बुद्धिः।xxx भावार्थ-विशाला नगरी का नाश करने के लिये श्री मुनिसुव्रत स्वामी के पादुका सहित स्तूप को उखाड़ने से नगरी का भंग हो सकेगा। ऐसा कथन कूलवालक मुनि ने किया यह पारिणामिक बुद्धि से। वैशाली के विनाश के विषय में प्राचार्य हस्तीमलजी ने खंड१, पृ० 746 से 754 तक लम्बा वर्णन किया है, किन्तु इस स्तूप के विषय में ऐतिहासिक विवरण नहीं दिया है / वैशाली के विनाश का संक्षिप्त इतिहास इसप्रकार है। राजा श्रेणिक के पुत्र कूणिक और वैशाली के राजा चेटक के बीच भयंकर युद्ध हुआ / कूणिक का बहुत दिनों तक वैशाली पर घेरा पड़ा रहा / लाखों सैनिकों के संहार होने पर भी कूणिक से वैशाली