________________ [ 24 ] व्रत, पंचमी की चौथ प्रादि विषयों में अनावश्यक पिष्टपेषण करके "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" नामक ग्रंथ में थोथे का कद बढ़ाने वाले प्राचार्य ने तीर्थंकर के परम उपादेय बारह गुणों का वर्णन नहीं किया है, यह बात उनको तीर्थकर परमात्मा के प्रति न्यूनभक्ति का परिचय कराती है। अन्य बात यह भी है कि देवों की चैवर ढुलाने एवं पुष्पवृष्टि मादि प्रवृत्ति का प्राप्त भगवान ने काम-भोग की तरह निषेध भी नहीं किया है / और ऐसी आडम्बर युक्त प्रवृत्ति में लगने की बजाय देवता शांतचित्त से धर्मदेशना ही क्यों नहीं सुनते ? ऐसे प्रश्नों का स्पष्टीकरण भी आवश्यक था। इसकी भी अपूर्णता इस इतिहास में पायी गयी है। इससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि आचार्य को अन्य बातों में जितनी रुचि है इतनी रुचि अरिहंत परमात्मा के गुणगान में नहीं है / आगे हम लिख चुके हैं कि प्रार्या चन्दनबाला के विषय में प्राचार्य लिखते हैं कि 44.4 चंदना ने जब कुछ समय बाद यौवन में पदार्पण किया तो उसका अनुपम सौंदर्य शतगुणित हो उठा। उसकी कज्जल से भी अधिक काली कैशराशि बढ़कर उनकी पिण्डलियों से अठखेलियां करने लगी। 88x मीमांसा-ऐसी अनावश्यक बातों की रुचि कम होने पर ही तीर्थंकर परमात्मा के बारह गुणों का गुणगान हो सकता है। अवसर प्राप्त अत्यन्त उपादेय तीर्थंकर के बारह गुणों का गुणगान न करना, गुण-गुणी में रहते हैं फिर अष्टप्रातिहार्य बाहर रहते हुए भी अरिहंत के गुण कैसे ? भगवान ने उनकी उपस्थिति में होती दिव्यध्वनि, पुष्पवृष्टि प्रादि का निषेध क्यों नहीं किया है ? ऐसे अनेक प्रश्नों को अस्पष्ट