________________ [प्रकरण 3] शासन रक्षक देव-देवियां जैनधर्म में शासन रक्षक देव-देवियों की मान्यता मूर्तिपूजा जितनी ही प्राचीन है / चौबीस भगवान के शासनरक्षक देव यक्षयक्षिणी होते हैं, जो समय-समय पर पाकर जनशासन की रक्षा एवं जैनशासनोन्नति के कार्यों को करते हैं / उनकी ऐसी अनुमोदनीय प्रवृत्ति की अनुमोदना हेतु प्रतिक्रमण में भवनदेवी श्रुतदेवी आदि का प्रशंसा सूचक काउस्सग्ग भी किया जाता है। इन देव-देवियों के विषय में आचार्य हस्तीमलजी खंड-१, पृ० 18 'अपनी बात' में लिखते हैं कि xxx प्रत्येक तीर्थकर के शासन-रक्षक यक्ष-यक्षिणी होते हैं, जो समय समय पर शासन की संकट से रक्षा और तीर्थंकरों के भक्तों की इच्छा पूर्ण करते रहते हैं। 8xx मीमांसा-यद्यपि प्रागमिक तथ्य होते हुए भी स्थानकपंथी एवं प्राचार्य हस्तीमलजी इन देव-देवियों में विश्वास नहीं करते हैं। फिर भी उक्त तथ्य लिखना भोले जनों को धोखा देना मात्र ही है। खंड-१, पृ० 788 पर प्राचार्य द्वारा "तीर्थंकर परिचय पत्र" बहुत लम्बा-चौड़ा दिया गया है। इसकी प्रशंसा कुछ विद्वानों ने की है। इस परिचय-पत्र में तीर्थंकर भगवान के दीक्षा के साथी, प्रथम तप, प्रथम पारणा दाता, छद्मस्थ काल आदि अनेकविध माहिति संदृब्ध की गयी है / किन्तु इस विशाल परिचयपत्र में चौबीस तीर्थंकरों के यक्ष