________________ - [ 166 ] - अर्थ- गौतम स्वामी का प्रश्न:- ( साधु और श्रावक नित्य जिनमन्दिर में जावें ) हे भगवंत् ! अगर नहीं जावें लो क्या प्रायच्छित ( दण्ड ) लगता है ? महावीर स्वामी:-हे गौतम ! यदि प्रमाद (पालस्य ) के कारण वे जिन मंदिर न जावें तो दो व्रत या तीन व्रत ( उपवास ) का प्रायच्छित लगता है। गौतम स्वामी हे भगवंत्. ! पौषध ब्रह्मचारी श्रावक पौषध में रहा हुअा क्या जिन मन्दिर जावे ? महावीर स्वामी- हाँ गौतम ! जावे। गौतम स्वामी-भगवन् ! मंदिर में वह किसलिये जावे ? महावीर स्वामी-हे गौतम ! ज्ञान-दर्शन-चारित्र निमित्त जावे। गौतम स्वामी-पौषधशाला में रहा हुमा पौषध-ब्रह्मचारी धावक जिनमन्दिर में नहीं जावे, तो प्रायच्छित क्या होता है ? . महावीर स्वामी हे गौतम ! साधु को जितना प्रायच्छित होता है उतना प्रायच्छित लगता है यानी छ8 ( बेला ) अथवा उसके समान तप का प्रायच्छित लगता है। _ [ श्री महा कल्पसूत्र शास्त्र का हिन्दी अनुवाद ] षष्ठ प्रमाण श्री महा निशीथ सूत्र में लिखा है कि जो पुरुष जिन मन्दिर बनावे, उसको बारहवां देवलोक तक की प्राप्ति होती है / यथा काउंपि जिणाययणेहि, मंडियं सव्वमेयणीवट्ट / दाणाइ चउक्केरणं, सढ्ढो गच्छेज्ज अच्चुयं जावनपरं / /