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________________ [ 166 ] छंदक है और जहाँ जिनप्रतिमाएं हैं वहां जाता है, जाकर जिनप्रतिमा का दर्शन करता है, दर्शन करके प्रणाम करता है, प्रणाम करके मोरपीछ ( मोरपंख ) लेता है, लेकर प्रतिमाओं का मोरपींछ से प्रमार्जन करता है। प्रमार्जन करने के बाद जिनप्रतिमाओं को सुगन्धित गंधोदक से स्नान कराता है, अभिषेक करके सुरभिगन्ध युक्त काषायिक वस्त्रों से ( अंगलुहना से ) भगवान के गात्रों को स्वच्छ करता ( पोंछता ) है, स्वच्छ करके सरस गोशीर्ष चंदन से गात्रों का विलेपन करता है, विलेपन करके अखंडित देवदूष्य ( वस्त्रयुगल ) रखता है, रखकर पुष्प चढ़ाता है, माला अर्पण करता है, गंध और सुगंधी अर्पण करता है, तथा वर्णक अर्पण करता है, वस्त्र अर्पण करता है, आभूषण चढ़ाता है, आभूषण चढाकर चारों ओर लम्बी पुष्पमालाएं लटकाता है, पुष्पमाला लटकाकर खुले हुए पंचवर्ण पुष्प हाथमें लेकर चारों ओर बिखेरता है, इस प्रकार पुष्पों द्वारा पूजोपचार ( पूजा द्वारा भक्ति से ) पूर्वक सिद्धायतन ( जिन मन्दिर ) को सजाता है, सजाने के बाद में जिनप्रतिमाके सामने अप्सराएं स्वच्छ चिकना रजतमय अक्षतों से अष्ट मंगल का प्रालेखन करती हैं, जिनके नाम स्वस्तिक यावत् दर्पण हैं। उसके बाद चन्द्रप्रभ रत्न, होरा और वैडूर्यरत्नों युक्त जिसका दंड उज्ज्वल है एवं सुवर्ण और मणिरत्नों की रचना से मनोहर, कृष्णागरु श्रेष्ठ कुन्दुरूप तुरुष्क धूप से मघमघायमान उत्तम गंध से युक्त धूपबत्ती जैसी सुगंधिको फैलानेवाला वैडूर्यरत्नमय धूपधाना ( धूपदानी ) को लेकर प्रयत्न पूर्वक (सावधानी से ) जिनवरों को धूप करता है. बाद में 108 विशुद्ध रचनावाला अर्थयुक्त अपुनरुक्त ( विविध ) महान श्लोकों से स्तुति करता है। स्तुति करके सात-पाठ कदम पीछे हटता है, पीछे हटकर बायाँ घुटना ऊँचा करता है और दाहिनां घुटना जमीन पर टिकाकर जमीन पर तीन बार सिर झुकाता है, मस्तक को जमीन पर लगाकर थोड़ा ऊँचा उठाता है, ऊंचा उठाकर दोनों हाथ जोड़कर अंजलीबद्ध करसंपुट करके इस प्रकार स्तुति करता है
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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