________________ [ 161 ] मुख्य संपादक श्री गजसिंहजी राठौड़ को हमारा इतना ही कहना है कि इतिहास लेखन में आगम शास्त्र, प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य एवं प्राचीन जिनमंदिर-जिनमूर्तियां एवं शिलालेख प्रादि के विद्यमान होते हुए, अगर आप सत्य इतिहास लिखते-लिखवाते और सही मार्गदर्शन करते तो आपकी विद्वता से विज्ञजनों को अवश्य संतोष और आनन्द होता। प्राचार्य हस्तीमलजी से हमें आशा ही नहीं, विश्वास भी है कि वे प्राचार्य पद की गरिमा समझते हुए आगे प्रामाणिक एवं सत्य इतिहास लिखने का कष्ट करेंगे / यही शुभेच्छा है कि प्रागे के इतिहास में प्राचार्य हस्तीमलजी पूज्य हेमचन्द्राचार्य महाराज, पूज्य हरिभद्रसूरिजी, पूज्य अभयदेव सूरिजी, पूज्य हीरसूरीश्वरजी, पूज्य यशोविजयजी आदि अनेक महान पुरुषों के विषय में जो भी लिखें वह सत्य तथ्य पर प्राधारित होना चाहिए एवं कुभारपाल महाराजा, वस्तुपाल-तेजपाल, उदायन मंत्री, आम्रभट्ट-बाहड़भट्ट, धरणशाह, पेथड़शाह, जगडुशाह, विमलशाह, करमाशाह आदि महान जैन श्रावकों के विषय में भी लिखें तो सत्य लिखें / साथ ही साथ शत्रुजय, सम्मेतशिखरजी, पावापुरीजी, गिरनारजी, वैभारगिरि, राणकपुर, प्रांबू, तारंगाजी, कुम्भारियाजी, केसरियाजी, नाकोडाजी, शंखेश्वरजी आदि तीर्थों के विषय में लिखें तो सही सही सत्य लिखेंगे और मिली हई एवं बची हई समयादि शक्तियों का सदुपयोग कर जैन शासन की गरिमा को उन्नत करेंगे। . जैन समाज में विद्यमान सर्व प्रबुद्ध जनों से विनती है कि प्रकाश से अंधकार में ले जाने वाली गलत इतिहास प्रादि साहित्य लिखने वालों की बालिश कुचेष्टा से सावधान एवं सतर्क रहें। ___ मेरे द्वारा जिनाज्ञा के विरुद्ध यदि कुछ भी लिखा गया हो तो मिच्छामि दुक्कडम् देता हूँ। सुजैः मयि उपकृत्य शोध्यम्। जैनं शासनम् जयतु।