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________________ [ 158 ] को प्रामाणिक ग्रन्थों का अध्ययन कर जिस धर्म या सम्प्रदाय के विषय में लिखना हो प्रामाणिकता से लिखना चाहिए / साम्प्रदायिक अभिनिवेश या बिना पूरे अध्ययन मनन के सुनी सुनाई बात पर लिख डालना उचित नहीं।४४४ .. मीमांसा-यही बात हमें प्राचार्य के लिये ही कहनी है कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों जैन सम्प्रदाय मूर्तिपूजा में विश्वास करते हैं, फिर मूर्तिपूजा के विषय में प्राचार्य ने विरुद्ध क्यों लिखा ? आगमग्रन्थों, पागमेतर प्राचीन जैन साहित्य एवं ऐतिहासिक शिलालेखों आदि की प्रामाणिक सामग्री होते हुए भी विपरीत मार्ग पर चलना और अपने अनुयायियों को भी विपरीत मार्ग पर भटकाये रखना क्या उचित है ? अगर प्राचार्य को जैनधर्म के विषय में इतिहास लिखना था तो दोनों दिगम्बर एवं श्वेताम्बर जैन परम्परा के प्राचीन साहित्य और ऐतिहासिक सामग्री के सहारे से मूर्तिपूजा विषयक तथ्य को सत्य लिखना था। इससे विपरीत अगर प्राचार्य को कल्पना पूर्वक मनगढंत इतिहास का एक समिति द्वारा निर्माण करवाना ही था तो जैन समाज को ऐसे कल्पित इतिहास की आवश्यकता ही क्या थी ? अगर प्राचार्य को स्थानकपंथी मान्यता पूर्ण ही इतिहास लिखना था और जिनमन्दिर प्रादि विषयों को अंधेरे में ही रखना था तो अच्छा यह था कि पाप "स्थानकपंथी जैन इतिहास" ऐसा कुछ नाम देकर श्रीमान् लोकाशाह से ही उसका प्रारम्भ करते और किसी भी इतिहास समिति द्वारा चाहे जैसा लिखवाते-छपवाते इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं होती और "स्थानकपंथी जैन इतिहास" ऐसा कुछ नाम पूर्वक उनके पाद्य पूर्वपुरुष वृद्ध जैन गृहस्थी लोकाशाह से इतिहास प्रारम्भ करने पर प्राचार्य को किसी भी झूठ का सहारा लेने की नौबत न आती एवं कम से कम जैन इतिहास को कलंकित करने के पाप से भी आप बच जाते / स्थानकपंथी मान्यता के अनुकूल इतिहास लिखना
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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