________________ [ 155 ] xxx भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति से ओत-प्रोत अनेक महात्माओं एवं विद्वानों द्वारा रचित प्रभु पार्श्वनाथ की महिमा से पूर्ण कई महाकाव्य, काव्य, चरित्र, अगणित स्तोत्र और देश के विभिन्न भागों में "भव्य कलाकृतियों के प्रतीक" विशाल मंदिरों का बाहुल्य, ये सब इस बात के पुष्ट प्रमाण हैं कि भगवान पार्श्वनाथ के प्रति धर्मनिष्ठ मानव समाज पीढ़ियों से कृतज्ञ और श्रद्धावनत है। मीमांसा-विशाल जिन मन्दिरों को मात्र भव्यकला कृतियों के प्रतीक कहना प्राचार्य की बहुत गहरी गलती है। ये मंदिर भगवान को प्रतिदिन वंदन-पूजन-सत्कार-सन्मान करके उनके प्रति कृतज्ञता एवं श्रद्धा का भाव प्रगट करने हेतु हैं / मन्दिरों को "भव्य कलाकृतियों के प्रतीक" कहने की अपनी धुन में प्राचार्य यह भूल गये कि फिर तो पूर्वाचार्यों द्वारा रचित स्तोत्र, भजन, स्तवन, चरित्रग्रन्थों आदि भव्य रचनात्रों को भी वाणीविलास या काव्य विनोद हेतु ही पूर्वाचार्यों ने रचा है, ऐसा अनुचित मानने की भी प्रापत्ति आजायगी। जिनमन्दिर और स्तोत्र मादि साहित्य तीर्थकर परमात्मा की भक्ति, उपकारी के उपकार के बदले में कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु और श्रद्धा तथा ज्ञान प्राप्ति हेतु एवं जिनेश्वर देव को नित्य वंदन, पूजन, सत्कार सम्मान हेतु है, यह बात प्राचार्य को भूलना नहीं चाहिए। प्रभु पार्श्वनाथ की भक्ति के विषय में प्राचार्य खंड 1, पृ० 523 पर लिखते हैं कि xxxजैन साहित्य के अन्तर्गत स्तुति-स्तोत्र और मंत्रपदों से भी ज्ञात होता है कि वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में से भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति के रूप में जितने मंत्र या स्तोत्र उपलब्ध हैं, उतने अन्य के नहीं हैं।xxx ___मीमांसा-पार्श्वनाथ भगवान के जितने स्तोत्र हैं, उतने ही जिनमन्दिर हैं, यह किसी को भूलना नहीं चाहिए। श्री पार्श्वनाथ