________________ 12 सगर पुत्रों के वहां पहुंचकर कोलाहल करने से कपिलऋषि द्वारा भस्मसात् करने की घटना से प्रभावित हो जैनाचार्यों ने ऐसी कथा प्रस्तुत को हो।xxx जनशासनोन्नति कारक महान राजा श्री संप्रति के विषय में वे लिखते हैं कि 444 श्वेतपाषाण की कोहनी के समीप गांठ के आकार के चिन्हवाली प्रतिमाएं जैन समाज में प्रसिद्ध रही है और उन सभी का सम्बन्ध राजा संप्रति से स्थापित किया जाता है। ऐसी प्रतिमाओं के अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठापित होने का उल्लेख भी किया गया है। मेरी विनम्र सम्मति के अनुसार ये श्वेतपाषाण की प्रतिमाएं सम्प्रति अथवा मौर्यकाल की तो क्या तदुत्तरवर्ती काल की भी नहीं कही जा सकती।xxx xxxजहाँ तक जैन मूर्ति-विधान एवं उपलब्ध पुरातन अवशेषों का प्रश्न है, यह बिना किसी संकोच के कहा जा सकता है कि राजा संप्रति द्वारा निर्मित मंदिर या मूर्तियाँ भारतवर्ष के किसी भी भाग में आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। 8xx आर्द्रकुमार के विषय में वे लिखते हैं कि xxx अभयकुमार ने अनार्यदेशस्थ अपने पिता के मित्र अनार्य नरेश के राजकुमार (आर्द्र कुमार ) को धर्मप्रेमी बनाने के लिये धर्मोपगरण (?) की भेंट भेजी।xxx करीब 2 हजार पृष्ठ के "जैनधर्म का मौलिक इतिहास खंड१, खंड-२" में ऐसी अठपूर्ण एवं कल्पित अनेक बातें प्राचार्य हस्तीमलजी ने लिखी हैं / ऐसे मनघडंत इतिहास को "मौलिक" कैसे कहा जा सकता है ? एवं इसको "जैनधर्म का इतिहास" कहना भी असत्य और अन्याय पूर्ण ही है।