________________ [ 131 ] हो कुमति क्यों प्रतिमा उत्थापी ? ये जिन वचम से स्थापी / जैनागम को प्रमाण करके आर्य श्री सुहस्ति महाराज ने संप्रति राजा को जैन संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु जिनमंदिर एवं जिनप्रतिमा बनवाने की प्रेरणा दी थी, इस सत्य की "तपागच्छ पट्टावली" नामक प्राचीन ग्रन्थ भी पुष्टि करता है / इस ग्रन्थ के आधार पर स्वयं प्राचार्य हस्तीमलजी भी खंड 2, पृ० 456 पर लिखते हैं कि 444 सम्प्रति के विषय में कतिपय जैन ग्रन्थों में इस प्रकार का उल्लेख मिलता है कि उसने भारत के आर्य एवं अनार्य प्रदेशों में इतने जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था कि वे सारे प्रदेश जिनमन्दिरों से सुशोभित हो गये। [ तपागच्छ पट्टावली ] xxx मीमांसा-'कतिपय' शब्द से प्राचार्य का क्या तात्पर्य है यह अस्पष्ट ही है / स्थानकपंथ के पाद्यप्रणेता जैन गृहस्थी लोकाशाह ने दीक्षा ली थी (?) ऐसा कहीं से अल्पविराम सा सहारा मिलने पर पूर्णविराम तक लिखने के कलाकार प्राचार्य हस्तीमलजी कतिपय ग्रन्थों का प्रामाणिक सहारा होने पर भी जिनप्रतिमा जैसे ऐतिहासिक सत्य तथ्य को क्यों नहीं मानते हैं ? वृत्ति, चरिण, भाष्य और टीकादि शास्त्र भी इस तथ्य से सहमत हैं, फिर भी प्राचार्य अप्रमाणिक वर्तन क्यों करते हैं ? क्योंकि उसी पृष्ठ पर प्राचार्य स्वयं लिखते हैं कि xxx चूणि और नियुक्तियों में यह भी सूचित किया गया है कि सम्प्रति ने प्रचुरमात्रा में जिनमूतियों को मंदिर एवं देवशालाओं में स्थापना करवा कर जैन संस्कृति और सभ्यता को स्थान-स्थान पर फैलाया था।xxx