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________________ [ 122 ] उक्त 'पट्टावली प्रबन्ध संग्रह' नामक ग्रन्थ जो प्राचार्य हस्तीमलजी ने लिखा है इस विषय में तटस्थ साहित्यकार, पुरातत्त्वज्ञ विद्वान् श्री अगरचन्दजी नाहटा “सत्य संदेश" पुस्तक में पृ० ( क ) पर-"एक अत्यावश्यक स्पष्टीकरण" लिखते हैं कि 444 मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में भी इस ग्रन्थ में प्रकाशित कई बातें सर्वथा गलत और साम्प्रदायिक कटुता को उभारने वाली हैं। [सत्य संदेश, संपादक-पारसमलजी कटारिया, जयपुर] 444 मीमांसा-श्री अगरचन्दजी नाहटा का उक्त कथन सर्वथा सत्य है / मूर्तिविरोधी गलत मान्यता वाले प्राचार्य के साहित्य की तटस्थ एवं प्रामाणिक कोई भी विद्वान् प्रशंसा नहीं कर सकता। डा० नरेन्द्र भाणावतजी जैसे विद्वान् भी जब साम्प्रदायिक कटुता उभारने वाले षड्यंत्र में ऐसे महाशय को साथ-सहकार-प्रोत्साहन देते हैं तब हमें सखेद आश्चर्य होता है। "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" पुस्तक के एक मुख्य संपादक न्याय-व्याकरण तीर्थ श्री गजसिंहजी राठौड़ ने खंड 1 ( पुरानी प्रावृत्ति ) में “संपादकीय नोंध" के पृ० 33 से 42 तक आचार्य हस्तीमलजी की लम्बी-चौड़ी प्रात्मवंचक खुशामद की है। पृ० 30 पर वे लिखते हैं कि xxx इतिहास-लेखन जैसे कार्य के लिये गहन अध्ययन, क्षीर नोर विवेकमयी तीव्र बुद्धि, उत्कृष्ट कोटि की स्मरण शक्ति, उत्कट साहस, अथाह ज्ञान, अडिग अध्यवसाय, पूर्ण निष्पक्षता, घोर परिश्रम आदि अत्युच्चकोटि के गुणों को आवश्यकता रहती है / वे सभी गुण आचार्य श्री ( हस्तीमलजी ) में विद्यमान हैं।xxx
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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