________________ [ 120 ] मीमांसा-यह तो अनजान से भूल हुई उसकी माफी श्री गौतम स्वामी मांगते हैं, किन्तु जानबूझकर और मायावृत्ति के साथ की गयी भूलों के लिये गहरे प्रायश्चित्त की आवश्यकता है। अतः इतिहास के अन्त में मिच्छामि दुक्कडम्' ऐसा प्राचार्य लिख दें, तो उससे दुष्कृतगर्दा नहीं हो सकती। जा जिसका मन समकित में निश्चल / कोई नहीं तस तोले रे // -पू० यशोविजयजी महाराज