________________ [ 114 ] प्राधुनिक चिंतकों के बहाने पूर्वाचार्यों के कथन को झूठा करने को तुले हुए हैं / किन्तु यही इस कल्पित परम्परा की शुरू से पादत रही है। जैनागमों में सम्यक् श्रद्धा को चारित्र, तप, शील प्रादि सब धर्मों से प्रथम बताया है / पंचसूत्रकर्ता प्राचीनाचार्य ने सम्यक् श्रद्धा के बिना जमालि आदि की चारित्र की सुन्दर क्रिया को भी "कुलटा नारी की क्रिया" कही है, जिसका फल संसार भ्रमण है। प्राचार्य हस्तीमलजी जैनागम कथित सम्यक् श्रद्धा को अच्छी तरह जानते, तो जैन साहित्य को पलटने की सुधारवादी प्रवृत्ति नहीं अपनाते / आधुनिक उच्छृखल इस प्रकार का भाब प्राचार्य ने खंड 2, पृ० 38/36 पर प्राक्कथन में प्रगट किया है / यथा 444 इसी प्रकार बहुत सी चमत्कारिक रूप से चित्रित घटनाओं को भी इस ग्रन्थ में समाविष्ट नहीं किया गया है। मध्ययुगीन अनेक विद्वान ग्रन्थकारों ने सिद्धसेन प्रभृति कतिपय प्रभावक आचार्यों के जीवन चरित्र का आलेखन करते हुए उनके जीवन की कुछ ऐसी चमत्कारपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया है, जिन पर आज के युग के अधिकांश चिन्तक किसी भी दशा में विश्वास करने को उद्यत नहीं होते। 800 मीमांसा-पंचमहाव्रत धारक प्राचीनाचार्यों को झूठा करके पागम एवं प्रागमेतर प्राचीन साहित्य में मनमाना और जीचाहा परिवर्तन करने पर भी उच्छृखल आधुनिक विचारकों को प्राचीन जैन साहित्य विषयक बात मान्य बनेगी या नहीं यह तो विचारणीय ही है / किन्तु प्राचीन जैन साहित्य के विषय में अपने उन्मार्ग प्रेरक सुधारवादी विचार प्राचार्य ने आज के युग के अधिकांश चिन्तकों के बहाने प्रस्तुत कर दिया है, जो जैनधर्म विषयक प्राचीन साहित्य पर प्रश्रद्धा एवं अविश्वास का सूचक है / स्याद्वाद परिकर्मित मति के प्रभाव के कारण