SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 100 ] अथाह ज्ञान, अडिग अध्यवसाय, "पूर्ण निष्पक्षता" ( ? ) घोर परिश्रम आदि अत्युच्यकोटि के गुणों को आवश्यकता रहती है। वे सभी गुण आचार्यश्री ( हस्तीमलजी ) में विद्यमान हैं।xxx मीमांसा-श्री गजसिंहजी को प्रशंसा एवं खुशामद नितांत प्रसत्य ठहरती है, क्योंकि आचार्य में निष्पक्षता प्रादि का सर्वथा अभाव ही पाया जाता है, जो बात हम पूर्व में दिखा चुके हैं। इतिहास विषयक तथ्य सत्य को छिपाने के बावजूद भी प्राचार्य पदारूढ़ और सत्यव्रत के धारक कहे जाने वाले प्राचार्य का छलकपट देखो कि वे खंड 2, पृ० 36 पर 'प्राक कथन' में लिखते हैं कि xxx हमारी चेष्टा पक्षपात विहीन एवं केवल यह रही है कि वस्तु स्थिति प्रकाश में लायी जाय / 888 मीमांसा-"वस्तुस्थिति प्रकाश में लायी जाय"-ऐसा प्रतिज्ञापूर्वक कहने वाले प्राचार्य को उनकी कथनी और करनी बीच कितना बड़ा अन्तर है यह विचारना चाहिए / इतिहासकार को तटस्थ और प्रामाणिक होना चाहिए जिसका स्थानकपंथी प्राचार्य हस्तीमलजी में नितांत प्रभाव ही पाया गया है, जो अत्यन्त खेद की बात है। सच्चा इतिहासकार तथ्य को कभी भी नहीं छिपाता है, चाहे वह स्वयं उसे माने या न मानें यह एक
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy