________________ [ 72 ] सिद्ध हो जाते हैं, ऐसी दशा में वे लोग जैनधर्म के मूल से सम्बन्धित जिनमूर्ति और जिनमूर्तिपूजा की प्राचीनता एवं सत्यता का समर्थन क्यों करेंगे? यहाँ वही पुरानी लकीर के फकीर बनकर प्राचार्य हस्तीमलजी ने महान जैनाचार्य 10 पूर्वधर प्रार्य श्री वज्रस्वामी के चरित्र को मूर्तिपूजा से संबंधित होने के कारण अप्रमाणिक लिखा है और सत्य को तोड़-मरोड़ करके प्रस्तुत किया है। इससे जैन इतिहास लेखन के सम्बन्ध में की हुई उनकी तटस्थता और सत्यता की प्रतिज्ञा का सर्वथा भंग ही हुआ है, जो अत्यन्त खेदजनक है। जिसको जैनागम हृदयंगम नहीं हुए हैं, वह चाहे प्राचार्य पदाधिरूढ़ क्यों न हों, जैन सिद्धान्त का दुश्मन ही है, क्योंकि जैनागम के विषय में वह दिङ मूढ़ है। -भागमेतर सबसे प्राचीन शास्त्र श्री उपदेशमाला