________________ [ 63 ] तो इस बात का है कि पूर्वाचार्यों द्वारा रचित टीकादि ग्रन्थों के सहारे बिना एक भी स्थानकपंथी विद्वान् ( ! ) अपना लेख सम्पूर्ण एवं प्रामाणिक लिख ही नहीं पाते हैं, फिर भी पूर्वाचार्यों को झूठा ठहराने में वे अपनी कृतघ्नता नहीं समझते / यह कैसी विडंबना है कि गुड़ खाना और गुलगुलों से परहेज ! खंड 1, पृ० 884 पर दी गयी, संदर्भ ग्रन्थ की सूची इस बात की साक्षी है कि प्राचार्य हस्तीमलजी को प्राचीन जैनाचार्यों पर श्रद्धा, भक्ति, बहुमान और आदर नहीं है / उसी सूची में स्थानकपंथी संत का नाम सन्मान एवं बहुमान सूचक विशेषणों से लिखा है। प्राचार्य हस्तीमलजी ने अपने इतिहास की संदर्भ सूची में जिनसे ज्ञान लिया है उन महान् उपकारी पूर्वाचार्यों के नाम प्रा० हेमचन्द्र, मलयगिरि, अभयदेवसूरि, राजेन्द्रसूरि ऐसे अबहुमान सूचक शब्द लिखकर और बहुमान सूचक विशेषणों का प्रयोग न कर उनके उपकार का बदला कृतघ्नता से चुकाया है। अन्यथा महाउपकारी पूर्वाचार्यों के नाम लिखने का अवसर प्राप्त हो, वहाँ प्रातःस्मरणीय, महोपकारी, महाज्ञानी, पूज्य, पूज्यपाद, परमपूज्य ऐसे विनय, श्रद्धा, भक्ति, सम्मान, बहुमान, आदर और अहोभाव सूचक शब्दों के प्रयोग द्वारा प्राचार्य की लेखनी पूलकित होनी चाहिए थी। लेखनी को पूर्वाचार्यों के पवित्र विशेषणों से पुलकित करने के बजाय अन्य विषयों में फालतू पिष्ट पेषण करने वाले प्राचार्य ने उपकारी के उपकार का बदला चुकाने का अवसर प्राने पर अपनी लेखनी का सही सदुपयोग नहीं किया है, जो उनका आघात जनक वर्तन है, क्योंकि पूर्वाचार्यों में जो ज्ञान है उसका अंश भी प्राचार्य में होना संभव नहीं है। कुछ शताब्दियों से पंडित मन्य आधुनिक चिंतकों की ऐसी कुप्रवृत्ति चली है, कि वे जिनसे ज्ञान लेते हैं उन महान पूर्वाचार्यादि के