________________ कठिनाइयों में उलझे रहना पड़ा, अतः इसका मुद्रण-कार्य बहुत धीरे धीरे चला। आखिर में, फिर 12 वर्ष बाद अब यह ग्रन्थ छपकर पूरा हुआ है और राजस्थानी साहित्य एवं इतिहास के प्रेमियों के करकमलों में उपस्थित हो रहा है / हमारी मूल योजना तो थी कि हम इस हेमरत्न की रचना के साथ, लब्धोदय, भागविजय आदि की रचनाओं को भी एक ही संग्रह के रूप में प्रकाशित करें और उनका तुलनात्मक विवेचन भी उपस्थित किया जाय / परन्तु, उक्त रूप से हेमरत्न को रचना ही को पूर्ण होने में असाधारण विलम्ब हुमा देखकर हमें उक्त विचार को स्थगित रखना पड़ा / तथापि, हमें यह देख कर बहुत संतोष हुमा कि बीकानेर-निवासी नाहटा बंधुनों के सदुद्योग से लब्धोदय-रचित पद्मिनी चउपई को भी एक सुन्दर प्रावृत्ति प्रकाशित हो गई है / डॉ० भटनागरजी ने प्रस्तुत संस्करण को सुसंपादित करने के लिए बहुत ही परिश्रम उठाया है / भिन्न-भिन्न प्रतियों के विविध पाठों का संकलन और सन्निवेश बड़े अच्छे ढंग से किया है। जिस प्रकार, इस ग्रन्थमाला में प्रकाशित 'कान्हड़दे प्रबन्ध' का उत्कृष्ट संस्करण हमारे परमप्रिय विद्वान् मित्र प्रो० के.बी. व्यास ने प्रस्तुत किया है, उसी प्रकार डॉ० भटनागर ने प्रस्तुत 'गोरा बादल पदमिणी च उपई' का यह सुन्दर संस्करण तैयार किया है / इस प्रकार की प्राचीन कृतियों के प्रमाणिक संस्करण तैयार करने वालों के लिए डॉ० भटनागर का यह सम्पादन आदर्श माना जाना चाहिए / हम इसके लिए डॉ० भटनागरजी का अपना हार्दिक अभिवादन करते हैं / प्रस्तुत 'पदमिणो चउपई' की मूलभूत प्रादर्श प्रति जो संवत् 1646 में लिखी हुई है वह स्वयं बनेड़ा निवासी स्वर्गीय वैरिस्टर श्री रविशंकरजी देराश्री ने हमें जयपुर में दिखाई थी। हमारा विचार था कि उस प्रति के प्राद्यन्त पत्रों के ब्लॉक बना कर इस पुस्तक में दे दिए जावें, परन्तु बहुत कुछ प्रयत्न करने पर भो स्व० देराश्रीजी के वंशजों से हमें यह सुविधा प्राप्त नहीं हुई। आशा है राजस्थानी-साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् इस प्रकाशन का यथोचित समादर करेंगे। मुनि जिनविजय चैत्र शुक्ला 6 (रामनवमी) सं० 2023 दिनांक 31 मार्च, 1966 राजस्थान प्राच्य-विद्या प्रतिष्ठान जो ध पुर