________________ गीराबावल परमणि चउप (ख) तत्सम रूपों के प्रति लगावमूल-अउर - B,C,D - अवर (< सं० अपर) उछाह - D - उत्सोह ऊछेद - D - उच्छेद (ग) स्थानीय बोली का प्रभावमूल- कवित्त - B,C,D,E - किवित्त ] मारवाडी की प्रादि इकार. कस्तूरी - E - किस्तुरी / प्रवृत्ति अबकइ - C - अबकिइ) मध्य राजस्थानी की अनइ - C - अनिइ प्रवनि - अविनि मध्य इकार-प्रवत्ति (घ) उच्चारण की मुखसुख प्रवृत्ति ('य' का निवेश.) मूल- करिसई- B,C - करिस्यई कहीइ - B,C - कहियइ. DE - कहिये उवेली उवेलीयडे (च) व्याकरण सम्बन्धी भूलें(१) लिंग की भूल - मूल - प्राडी (स्त्री०)-B-पाडडे, C,D,E-प्राडो (पु.) (2) वचन की भूल- मूल - प्राणा (ब.व.)-B-प्राणडे, D.E -प्राणुं (ब.व.) पदमणि चउपई की कथावस्तु का विस्तार दस खण्डों में हुआ है / प्रत्येक खण्ड की कथा संक्षेप में इस प्रकार है 1. खण्ड - चित्तौड़ के राजा रतनसेन का अपनी पटरानी प्रभावती के व्यंग पर सिंहलद्वीप में जाकर वहां के राजा की बहिन पगिनी से विवाह कर के लौटना-(१-६३)। 2. खण्ड - रतनसेन और पपिनी के प्रेम-प्रसंग के समय राघव का अन्तःपुर में प्रवेश और इस कारण रतनसेन का क्रोध में प्राकर उसकी आँखें निकलवाने का आदेश / राघव का डर से भाग जाना- (94-135) / 3. खण्ड - राघव का दिल्ली पहुंचना और वहाँ एक भाट की सहायता से अलाउद्दीन के दरबार में प्रवेश कर पमिनी स्त्री का प्रसंग छेड़ना। अलाउद्दीन का अपने हरम में पधिनी स्त्री की खोज के लिये रांघव द्वारा निरीक्षण कराना और उसमें एक भी पद्मिनी स्त्री न होने पर राघव के संकेत पर पद्मिनी के लिये सिंहलद्वीप पर चढ़ाई करना-(१३६-१८६)। 4. खण्ड - अलाउद्दीन द्वारा सिंहल पर आक्रमण और समुद्र में अनेक कठिनाइयों के कारण पीछा लौटना-(१८७-२२७)।