________________ कवि हेमरतन कृत [खंड वादिल माहि छोडावण' गयउ', राजा रूसि अपूठठ' थय। "फिट रे बादिल! मुह म दिखालि, सबल लिगाडी तई मुझ गालि // 568 // वयरी' वयर' घण' तई कीउ', पदमिणि साटइ' मुझ नई ली। विधवट माथइ घाली खेह, "निसत सुभट हूआ निसनेह" // 569 // बादिल बोला- "सांमी सुण, अवर काउ' छह ए मंत्रण। मुष्टि करीन आघा' चल',भागि तुहारई होसी भलउ?" // 570 // // 568 // 1 छुडावण BODE | 2 गयो DE | 3 रूठि BCD | 4 अपूठो OB, अपूठौ / / ५थयो OE, थयौ / / 6 लगाडी Bo, लगावी D, लिगाइ / 7 ते 0, तै D / 8 मुझि D / 7-8 मुझने। // 569 // 1 वहरी , बयरी D / 2 बइर 0, बैर / / 3 घणो CE, घणौ / / 4 ते , तै DE | 5 कियो , कियौ DE | 6 साटै DE | ७नै DE / 8 लियो लियौ DE | 9 माथै DE | 10 नाखी / / 11 खित्री निसत थया सविसेह / ॥५७०॥१बोले / / 2 सुणो , सुणी / / 3 कियउ B, कियो , कियौ / 4 छै / / ५मंत्रणो B, मंत्रणी D / 6 नै D / 7 अब तुम्हि BD, तमे 0 / 8 चलो B0, चलौ / / 9 तुम्हारह Bo, तुहारै D / 10 होसइ B, होस्यह / 11 भलो DEI A 548 / B626 / 0636 / D781 / / प्रतिमें नही है / इसके आगे A प्रतिमें चो. सं. 561 के बाद तथा BOD प्रतियों मेंकवित्त-कीउ कूढ वादिल, लेइ पालिखी पहुत्तउ, तसु महि राखिउ बाल, नाम पदमिणि दियत्त / / हूउ हरष सुरतांण, जबहि सुणि आवत नारी / गोरी तब पूछीउ, बोल बोलइ बिचारी॥ "अलावदीन सुणि बीनती, एक वात मोरी कलई"। पदमिणि नारि इम उच्चरई "एकवार राजा मिलई" // 549 / / 622 / 0632 / D677 / पाठान्तर-कीयउँ B, कियो 0, कियौ DI पालखी BD, पालखी 0 / पहूतो , पहूतौ D // तसु माहि गोरो राउ BOD, दित्त BC, दीतो D // हुवउ B, हुयो , हुवो DI आवती राणी BOD || पदमिणि तव BCD, बोलि सुललित वाणी BCD || कलै D // ऊचरै / मुझ रतनसेन राजा मिलई (मिलै D) BODU कवित-बादिल तिहाँ आविउ, राउ जिहां बंधणि बद्धउ / ले मस्तक आपणउ, चरण ऊपरि तसु दिदउ / एउ कोप राजान, वर तई सारिउ वेरी / एह दई न लोभिउ, नारि आणी क्युं मेरी // पादिल ताम मनिमहि हसिउ, कृपा करउ सांमी सही। बाल रूपि पदमावती, राउ नारि तोरी नही / / 550 / / 626 / 0636 / / 68 / / पाठान्तर-आवियो 0D / गांधण छ / बांधियर्ड B / बांध्यो , बंध्यौ D // आपणो 0D, चरण राज लेड दीपउ B | (दीयो 0, दौधौ D)॥हवउ B, हयो , हुवी D, तै D, बयरी D // मुझ वचन लोपियउ (लोपियो OD) BOD || हस्यउ B, हस्यो 0, हस्या D, करो 0 करौ D, बालिका BOD, राव DI यह कवित्त BOD प्रतियों में चो. सं. 563 के बाद दिया गया है। प्रतिमें। कवित्त-फिट बादल कहि राव, वाच चुक्को हिंदुवानह / खित्री ध्रम लज्जयौ, मिट्यौ भडमान गुमानह // साम भ्रम लुप्पियो, लूण तासीर न किन्ही / जी तव प्यारो कीयौ, नारि असपतिकुं दिन्ही॥ कहा करूं मैं त'परवस परयौ, वाच लोप आलम भयो। सत छोडि किती अब जीवि हैं, जब ही नीर उतरिगयो / / 656 / / कीवादल सुणि राव, वाच हिंदुवान न चुक्कहिं / खित्री धम्म उज्जली, सुहडन न धीरज मुकहिं / / साम ध्रम्म रखि है सदा, जस्स सब ही कौं प्यारी / भुगतहुं गढ चीत्तोड, इला जस बास उवारी॥ मैं करहुं सेव अस सांभि की, असपति सहि लहि में लयौ। महिमांन मान दिजै सदा, करहुं यादि पुव्वहि कसौ // 657 / / दूहा-महिल अगंजित गढ सधर, अहि सत राज गहिल। उस आलिमकी महिर सौं, सब ही होहि सहिल्ल / / 658 // राखि रजा सिर रांमकी, धरि मन उमँग उछाह / राज पधारहुं चित्रगढि, सबविधि होहि भलाह // 659 // कवित-राव करहु मनि व्यांन, जवनपति हह हमीरह / गमर कियै रस नाहि, ढलकि हे अंजलि नीरह। परा लेख जो कछु, धाता निम्यौ निस छट्ठी। रोस मोस विनु न क्युं, लोक वाइक नहु झुट्ठी // हजरत रजा सिरि परि धरहु, उत्तम रीत न छांडीये। डाव विण घाव है है नहीं, वांचहुं पहुं मरम होये // 66 //