________________ प्रस्तुत संस्करण पद्मिनो को कथा को लेकर जायसी कृत 'पदमावत' हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने जायसी की अन्य रचनाओं के साथ इसका भी उद्धार किया। 'मिश्रबन्धु विनोद' तथा शुक्लजी के 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लब्धोदय (लक्षोदय) कृत 'पद्मिनी चरित्र' की सूचना मिलती है। इधर नागरी प्रचारिणी पत्रिका के पुराने अंकों में जटमल नाहर कृत 'गोरा बादल की कथा' के गद्य में लिखे जाने के विषय में भी विवाद चला था। राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज में मुझे अपनी यात्रा में इन रचनामों की अनेक हाथ-पड़तों की छानबीन में हेम रतन कृत 'गोरा बादल पदमिणि चउपई' के साथ भागविजय (और संग्रामसूरि) कृत 'गोरा बादल पदमिरिण चउपई' की भी अनेक प्रतियो प्राप्त हुई / इन सब में जायसी को छोड़ कर अन्य सभी रचनाओं के मूल में हेमरतन की रचना ही प्राधार रूप में बनी है / हेमरतन ही इस रचना का मूल लेखक है। वि० सं० 1645 में हेमरतन ने अपने इस काव्य की रचना की थी। वि० सं० 1680 में जटमल नाहर ने हेमरतन की रचना का एक विकृत रूप 'गोरा बादल की कथा' नाम से प्रस्तुत किया था। यह रचना गद्य में न होकर पद्य में लिखित है। फिर वि० सं० 1706 में लब्धोदय ने हेमरतन की रचना को ही गेय रूप प्रदान कर 'पमिनी चरित्र' नाम से विविध ढालों में ढाला / वि० सं० 1760 में भागविजय ने और उसके कुछ वर्ष पूर्व संग्राम सूरि ने इसके परिवर्तित और परिवद्धित संस्करण तैयार किये। इस प्रकार पद्मिनी की कथा को लेकर रचित काव्यों को निम्न लिखित वर्गों में रखा जा सकता है : 1. प्रज्ञात वर्ग : सम्भवतः बैन अथवा अन्य कोई चारण कवि / बैन का उल्लेख जायसी ने 'पदमावत' में किया है-'कथा परम्भ बैन कवि कहा'। इसी प्रकार हेमरतन की रचना में 'हेतंमदान कविमल्ल भणि' (21 / 154) पाया है। 2. जायसी वर्ग : प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'पदमावत' के प्रथम संस्करण में अपने पूर्व के चार संस्करणों का उल्लेख किया है। उक्त संस्करण को उन्होंने प्रामाणिक हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर तैयार किया था। इसके पश्चात् डा० माताप्रसाद गुप्त और डा. वासुदेवशरण अग्रवाल के दो भिन्न (पर दूसरा पहले पर आधारित) प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित हए। मैंने इस संरकरण में तुलना के लिये इन दोनों का उपयोग किया है।