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________________ 237 सयोगकेवली गुणस्थान अज्ञान दो प्रकार का होता है - 1. मिथ्या श्रद्धा के निमित्त से संशयादि विपरीतता लिये हुए जो व्यक्त ज्ञान होता है, उसे अज्ञान अथवा मिथ्याज्ञान कहते हैं। यह अज्ञान प्रथम गुणस्थान से लेकर दूसरे सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान पर्यंत होता है। (तीसरे गुणस्थान में श्रद्धा के अनुसार ज्ञान भी मिश्र/सम्यग्मिथ्यारूप रहता है।) 2. ज्ञानावरण कर्म के उदय से जो ज्ञान का पर्याय में अभाव रहता है, उसे भी अज्ञान कहते हैं। इस दूसरे प्रकार के अज्ञान का नाम औदयिक अज्ञान है। यह पहले गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान के अंतिम समय पर्यंत रहता है। औदयिक अज्ञान का नाश केवलज्ञान होने पर ही होता है। अतः परिभाषा में औदयिक अज्ञान नाशक विशेषण केवलज्ञान के लिये दिया है। केवलज्ञान का दूसरा विशेषण “असहाय' दिया है। असहाय शब्द के दो अर्थ होते हैं। प्रथम अर्थ - जिसे किसी से भी मदद या सहाय की आवश्यकता ही नहीं है; जो स्वयं अपने सब कार्यों के लिये समर्थ, स्वसहाय, स्वाधीन तथा परिपूर्ण है, उसे भी असहाय कहते हैं। यह स्वयंपूर्णता का द्योतक है। ___- दूसरा अर्थ - दीन, हीन, जिसका कोई मदद करनेवाला या सहायक नहीं है; तथापि जो दूसरों से सहयोग अर्थात् मदद की अतिशय हार्दिक परिणामों से अपेक्षा रखता है; उसे असहाय कहते हैं। यह दीनता का द्योतक है। ___ प्रस्तुत प्रकरण में केवलज्ञान के लिये प्रथम अर्थ ही लागू होता है, पहला नहीं। केवलज्ञान के लिये न शरीर की आवश्यकता है, न इंद्रियों की और न बाह्य प्रकाश आदि निमित्तों की। इतना ही नहीं केवलज्ञान को बाह्य ज्ञेय (ज्ञान जिस वस्तु को जानता है, उसे ज्ञेय कहते हैं) वस्तुओं की साक्षात् उपस्थिति भी आवश्यक नहीं है; क्योंकि केवलज्ञान तो जो ज्ञेय पदार्थ वर्तमान में छद्मस्थ को साक्षात् प्रत्यक्ष नहीं, (जो ज्ञेय सूक्ष्म, अंतरित और दूर हैं) ऐसे
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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