________________ 230 गुणस्थान विवेचन राग शब्द जीव के राग-द्वेष-मोह/मिथ्यात्व, क्रोधादि चारों कषाय, हास्यादि नौ नोकषाय - इन सबका ही प्रतिनिधित्व करता है। राग गया तो जीव के सर्व विभाव निकल गये हैं अर्थात् पूर्ण वीतरागता प्रगट हो गयी है। ___ इस वीतरागरूप मोह-क्षोभ रहित साम्यभाव को ही जिनधर्म में धर्मरूप कहा गया है। यह वीतरागता जीव के चारित्रगुण की स्वाभाविक पर्याय है। इस वीतरागता का प्रारंभ चौथे अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान में होता है; अतः चतुर्थ गुणस्थानवी जीव किसी भी गति का हो, वह धार्मिक ही है। __वीतराग पर्याय का उत्पादक तो जीव द्रव्य अथवा जीव का चारित्रगुण है; तथापि निमित्त की मुख्यता से कथन करते समय निमित्त का ज्ञान कराने के लिए संपूर्ण कषायों के क्षय के समय अथवा कर्म के क्षय से वीतरागता उत्पन्न हुई; ऐसा व्यवहारनय सापेक्ष कथन जिनवाणी में आया है। ___ कषाय कर्मों का नाश पुद्गल द्रव्य की पर्याय है और वीतरागता जीव द्रव्य के चारित्र गुण की पर्याय - इन दोनों को एक-दूसरे का कार्य-कारण बतानेवाला ही निमित्त-नैमित्तिक का कथन कहलाता है। इसमें दोनों द्रव्यों की पर्यायों की भिन्नता तथा स्वतंत्रता का ज्ञान रखना बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्य है। ___ यदि कोई अज्ञानवश निमित्त-नैमित्तिक संबंध में इन दोनों पर्यायों की भिन्नता तथा स्वतंत्रता का ज्ञान नहीं रख पाता और उनमें कर्ताकर्म संबंध मान लेता है तो मिथ्यात्व का प्रसंग आ जाता है, जो सात व्यसनों से भी महान पाप है। कथन जिनवाणी का होने पर भी यदि उसकी अपेक्षा समझने की सच्ची दृष्टि न प्राप्त हुई हो तो अपात्र जीव जिनवाणी के लाभ से वंचित ही रहता है; जिसके फलस्वरूप संसार में अनंत दुःखरूप जन्म-मरण ही करता रहता है। अन्य नाम - क्षीणमोह गुणस्थान को ही क्षीणकषाय भी कहते हैं, तथा इसका पूर्ण नाम क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ है।